अमेरिका का टैरिफ वॉर और उसका भारत व अन्य देशों पर असर

 टैरिफ (Tariff – यानी आयात शुल्क/Import Duty) को बढ़ाने या घटाने से उसकी और दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता है।
1. टैरिफ (Tariff) क्या है?

टैरिफ वह कर (Tax) है जो कोई देश बाहर से आने वाले माल (Imports) पर लगाता है।

जब टैरिफ बढ़ता है → बाहर से आने वाला सामान महँगा हो जाता है।

जब टैरिफ घटता है → बाहर से आने वाला सामान सस्ता हो जाता है।
2. टैरिफ बढ़ाने का असर (Import Duty बढ़ाना)

(A) देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था पर

1. घरेलू उद्योग की सुरक्षा (Protection of Domestic Industry)

बाहर से आने वाला सामान महँगा हो जाएगा।

इससे देश के स्थानीय (Domestic) उत्पाद सस्ते और प्रतिस्पर्धी दिखेंगे।

उदाहरण: अगर भारत चीन से आने वाले खिलौनों पर 50% टैरिफ लगा दे तो भारतीय खिलौना उद्योग को फायदा होगा।

2. सरकार की आय में वृद्धि (Increase in Government Revenue)

ज्यादा टैरिफ = सरकार को ज्यादा टैक्स की कमाई।

इससे इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास योजनाओं पर खर्च किया जा सकता है।

3. महँगाई (Inflation) का खतरा

आयातित चीज़ें महँगी होने से उपभोक्ताओं को ज्यादा दाम चुकाने पड़ते हैं।

खासकर अगर वे चीज़ें देश में कम बनती हों (जैसे तेल, मोबाइल, मशीनरी)।

4. प्रतिस्पर्धा घटने का खतरा

घरेलू कंपनियों को बिना प्रतियोगिता के "सुरक्षा कवच" मिल जाता है।

इससे वे कम इनोवेटिव और महँगे हो सकते हैं।

(B) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

1. अन्य देशों से तनाव (Trade War)

जिस देश से आयात आ रहा था, वह भी बदले में अपने टैरिफ बढ़ा सकता है।

इससे दोनों देशों का व्यापार घट सकता है।

2. निर्यात पर असर (Effect on Exports)

टैरिफ की वजह से आयात महँगा होने से विदेशी कंपनियाँ भी उस देश का माल खरीदना कम कर सकती हैं।

3. टैरिफ घटाने का असर (Import Duty कम करना)

(A) देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था पर

1. सस्ता आयात (Cheaper Imports)

विदेशी माल सस्ता हो जाएगा।

उपभोक्ताओं को सस्ते दाम में ज्यादा विकल्प मिलेंगे।

2. घरेलू उद्योग पर दबाव

बाहर का माल सस्ता होने से देशी कंपनियाँ प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकती हैं।

छोटे उद्योग या “नए उद्योग” को नुकसान हो सकता है।

3. मुद्रास्फीति (Inflation) कम हो सकती है

जब बाहर से सस्ता सामान आएगा तो महँगाई नियंत्रित रहेगी।

(B) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

1. विदेशी निवेश को प्रोत्साहन

विदेशी कंपनियाँ ऐसे देश में ज्यादा माल बेचने के लिए निवेश करेंगी।

2. अच्छे व्यापारिक रिश्ते

देशों के बीच विश्वास और व्यापारिक सहयोग बढ़ेगा।

FTA (Free Trade Agreement) या WTO जैसी संस्थाओं के नियमों के अनुकूल रहेगा।

4. संतुलन क्यों जरूरी है?

अगर टैरिफ बहुत ज्यादा है → घरेलू उद्योग तो सुरक्षित रहेगा, पर उपभोक्ता को महँगी चीजें खरीदनी पड़ेंगी।

अगर टैरिफ बहुत कम है → उपभोक्ता को फायदा, लेकिन स्थानीय उद्योग बंद होने का खतरा।


इसलिए अधिकांश देश संतुलित नीति (Balanced Policy) अपनाते हैं।
कुछ सेक्टरों (जैसे कृषि, रक्षा) में ऊँचा टैरिफ रखते हैं और कुछ सेक्टरों (टेक्नोलॉजी, कच्चा माल) में
टैरिफ बढ़ाना = घरेलू उद्योग की रक्षा + सरकारी कमाई ज्यादा + उपभोक्ता को नुकसान (महँगाई)।

टैरिफ घटाना = उपभोक्ता को फायदा + प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी + घरेलू उद्योग को खतरा

अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade) आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। लेकिन जब कोई देश दूसरे देशों पर टैरिफ (Import Duty/शुल्क) बढ़ा देता है, तो उसे ट्रेड वॉर (Trade War) कहा जाता है। अमेरिका ने हाल के वर्षों में चीन, यूरोप, भारत और कई अन्य देशों पर अपने टैरिफ बढ़ाए, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि अमेरिका के टैरिफ वॉर का भारत और अन्य देशों पर क्या प्रभाव पड़ा।


टैरिफ वॉर क्या है?

जब कोई देश आयात पर ज्यादा शुल्क लगाता है ताकि अपने घरेलू उद्योगों को सुरक्षा मिले, तो दूसरा देश भी बदले में टैरिफ बढ़ा देता है। यह सिलसिला ट्रेड वॉर का रूप ले लेता है। अमेरिका ने यह रणनीति खासकर चीन और कुछ हद तक भारत, यूरोपियन यूनियन, कनाडा आदि के खिलाफ अपनाई।

अमेरिका के टैरिफ वॉर का वैश्विक असर

1. चीन पर प्रभाव

अमेरिका ने चीन से आने वाले स्टील, एल्युमिनियम और इलेक्ट्रॉनिक सामान पर भारी टैरिफ लगा दिया।

इससे चीन का निर्यात घटा और उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ा।

चीन ने भी बदले में अमेरिकी सोयाबीन, ऑटोमोबाइल्स और टेक प्रोडक्ट्स पर टैरिफ बढ़ा दिए।


2. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) प्रभावित

मोबाइल, लैपटॉप, ऑटो पार्ट्स जैसी चीज़ों का उत्पादन कई देशों में बंटा हुआ है।

टैरिफ वॉर से इनकी लागत बढ़ी और सप्लाई चेन बाधित हुई।


3. तेल और कमोडिटी की कीमतों पर असर

वैश्विक व्यापार घटने से कच्चे तेल और अन्य कमोडिटी की कीमतों में उतार-चढ़ाव आया।

भारत पर अमेरिका के टैरिफ वॉर का असर

1. निर्यात में दबाव

अमेरिका ने भारत को दिए गए GSP (Generalized System of Preferences) का दर्जा हटा दिया।

इससे भारत के लगभग 200 से ज्यादा उत्पादों (जैसे टेक्सटाइल, लेदर, इंजीनियरिंग गुड्स) पर ज्यादा टैरिफ लग गया।

भारतीय निर्यातकों को अमेरिका में अपने उत्पाद बेचने में कठिनाई हुई।


2. चीन से व्यापारिक अवसर

जब अमेरिका ने चीन से आयात घटाया, तो भारत जैसे देशों को मौका मिला कि वे अमेरिका को सस्ते दाम पर वैकल्पिक सामान बेच सकें।

खासकर टेक्सटाइल, फार्मास्युटिकल्स और आईटी सेवाओं में भारत को फायदा हुआ।


3. कृषि क्षेत्र पर असर

अमेरिका ने भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर टैरिफ लगाया।

बदले में भारत ने अमेरिकी बादाम, अखरोट और दालों पर टैरिफ बढ़ा दिया।

इससे कृषि व्यापार में उतार-चढ़ाव आया।


4. स्टार्टअप और आईटी सेक्टर पर दबाव और अवसर

अमेरिका ने वीज़ा पॉलिसी कड़ी की, जिससे भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को दिक्कत हुई।

लेकिन साथ ही चीन पर अमेरिकी दबाव के कारण भारतीय स्टार्टअप्स और सॉफ्टवेयर कंपनियों को नए अवसर भी मिले।

अन्य देशों पर असर

यूरोपियन यूनियन

अमेरिका ने यूरोप से आने वाली कारों, स्टील और वाइन पर टैरिफ बढ़ाए।

यूरोप ने भी अमेरिकी सामान पर टैरिफ बढ़ाकर जवाब दिया।


कनाडा और मेक्सिको

अमेरिका और इनके बीच भी टैरिफ विवाद हुए, खासकर स्टील और एल्युमिनियम को लेकर।

हालांकि बाद में NAFTA की जगह नया समझौता (USMCA) करके स्थिति सुधारी गई।


विकासशील देश

अमेरिका और चीन की टकराहट से वैश्विक मांग घटी, जिससे विकासशील देशों के निर्यात में गिरावट आई।

निष्कर्ष

अमेरिका का टैरिफ वॉर सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा।

भारत को इससे मिश्रित प्रभाव देखने को मिला — कुछ सेक्टरों को नुकसान (जैसे स्टील, टेक्सटाइल), तो कुछ सेक्टरों को फायदा (जैसे फार्मा, आईटी)।

वैश्विक स्तर पर व्यापारिक अनिश्चितता बढ़ी और देशों को अपनी ट्रेड पॉलिसी और सप्लाई चेन पर नए सिरे से सोचने पर मजबूर होना पड़ा।


👉 कुल मिलाकर, अमेरिका का टैरिफ वॉर वैश्विक अर्थव्यवस्था में तनाव और अवसर दोनों लेकर आया








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